Explainer : क्या होता है अध्यादेश, कैसे विधेयक से अलग, क्यों अक्सर होता है इसका विरोध

हाइलाइट्स

संविधान किसी भी केंद्र सरकार को संसद में पास कराए बगैर अध्यादेश लाने का अधिकार देता है
कोई भी अध्यादेश स्थाई नहीं होता बल्कि ये 06 हफ्ते के लिए प्रभावकारी होता है, फिर इसे संसद से पास कराना होता है

सुप्रीम कोर्ट ने 11 मई को फैसला दिया कि दिल्ली की सरकार जनता के जरिए चुनी हुई सरकार है. उसे अधिकार है कि वह शासन चलाने के लिए अपने तरीके से अधिकारियों की ट्रांसफर और पोस्टिंग करे. सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद दिल्ली सरकार ने तड़ातड़ आला अधिकारियों के तबादले किए लेकिन इसे रोकने के लिए केंद्र सरकार तुरंत एक अध्यादेश ले आई. अब स्थिति ये है कि दिल्ली सरकार ने जितने भी तबादले किये थे, उन सबको दिल्ली के उप राज्यपाल ने रद्द करते हुए पुरानी स्थिति बहाल कर दी है.

केंद्र सरकार के इस अध्यादेश का विरोध हो रहा है. आमतौर पर केंद्र की सरकारें संसद में किसी कानून को पास कराने से बचने के लिए अध्यादेश का सहारा लेती हैं. फिर तुरंत उसे कानून के तौर पर अस्थायी तौर पर लागू कर देती हैं. अध्यादेश का प्रावधान हमारे संविधान में है जरूर लेकिन विपक्षी दल आमतौर पर इसे अलोकतांत्रिक कदम के तौर पर देखती हैं.

अध्यादेश और विधेयक में एक खास अंतर होता है. हालांकि दोनों का ही मकसद कानून के तौर पर लागू होना है. विधेयक के कानून में बदलने की एक पूरी प्रक्रिया होती है जबकि अध्यादेश तुरत-फुरत केंद्र सरकार से राष्ट्रपति के पास भेजा जाता है और उनके दस्तखत होते ही लागू हो जाता है. अक्सर केंद्र सरकार द्वारा राष्ट्रपति के पास भेजे जाने वाले अध्यादेशों को राष्ट्रपति से कुछ ही घंटों या एक दो दिनों में मंजूरी भी मिल जाती है. भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में बहुत कम ऐसा हुआ है कि राष्ट्रपति ने किसी अध्यादेश को रोककर वापस लौटा दिया हो.

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सवाल – क्या है केंद्र सरकार का ये नया अध्यादेश?
– दिल्ली की केजरीवाल सरकार के खिलाफ केंद्र सरकार जो अध्यादेश लेकर आई है और उसे लागू किया है, वो राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली (संशोधन) अध्यादेश, 2023 है, इसके तहत दिल्ली में सेवा दे रहे ‘दानिक्स’ कैडर के ‘ग्रुप-ए’ अधिकारियों के तबादले और उनके खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई के लिए ‘राष्ट्रीय राजधानी लोक सेवा प्राधिकरण’ गठित किया जाएगा. प्राधिकरण को सभी ‘ग्रुप ए और दानिक्‍स के अधिकारियों के तबादले और नियुक्ति से जुड़े फैसले लेने का हक़ तो होगा लेकिन आख़िरी मुहर उपराज्यपाल की होगी.यानी अगर उपराज्यपाल को प्राधिकरण का लिया फैसला ठीक नहीं लगा तो वो उसे बदलाव के लिए वापस लौटा सकते हैं. फिर भी अगर मतभेद जारी रहता है तो अंतिम फैसला उपराज्यपाल का ही होगा.

सवाल – संविधान का कौन सा प्रावधान केंद्र को अध्यादेश लाने का अधिकार देता है?
– संविधान के अनुच्छेद 123 के तहत कार्यपालिका को विशेष मामलों में अध्यादेश लाने का अधिकार है, खासकर तब जब संसद का कोई सत्र नहीं चल रहा हो. जब संसद के दोनों सदनों का सत्र चल रहा हो तो उस समय जारी किया गया अध्यादेश अमान्य माना जाएगाहालांकि कई जानकारों का कहना है कि इस अध्यादेश को केंद्र सरकार जिस तरह सुप्रीम कोर्ट के फैसले के तुरंत बाद लेकर आई, वो फ़ैसला नैतिकता और लोकतंत्र के मापदंड पर सही नहीं उतरता.

सवाल – क्या होता है अध्यादेश? 
– किसी विशेष स्थिति से निपटने के लिए जब सरकार द्वारा कोई आदेश जारी किया जाए या निकाला जाए, उसे अध्यादेश कहा जाता है. जब केंद्र सरकार आपात स्थिति में किसी कानून को पास कराना चाहती है और उसे लगता है कि इसे सदन में समर्थन नहीं मिलेगा तो वो अक्सर अध्यादेश के तौर पर उसको राष्ट्रपति से मंजूर करा लेती है.

सवाल – क्या अध्यादेश एक स्थायी कानून व्यवस्था होती है या सदन में उसे लाना ही होता है?
– किसी भी अध्यादेश की अवधि केवल 6 सप्ताह की होती है. बेशक राष्ट्रपति उसे पास कर दें लेकिन अध्यादेश को 6 हफ्ते के भीतर संसद से पास कराना ही होता है और फिर से इसे किसी विधेयक की ही तरह ही कई चरणों से गुजरना होता है.

सवाल- विधेयक क्या होता है और इसकी क्या प्रक्रिया है?
– जब भी सरकार किसी मसले पर कोई कानून बनाना चाहती है तो उससे संबंधित प्रारूप को संसद में पेश किया जाता है. विधेयक को सबसे पहले लोकसभा और राज्यसभा में पेश किया जाता है. उसके बाद इस पर बहस होती है. फिर इसे दोनों सदनों से बहुमत से पास होना जरूरी है, ये काम सदन में वोटिंग के जरिए होता है.

दोनों सदनों में अगर ये पास हो जाता है तो आगे की प्रक्रिया के तहत राष्ट्रपति के पास भेजा जाता है, जैसे ही राष्ट्रपति इस पर मंजूरी दे देता है, ये कानून बन जाता है. अध्यादेश और विधेयक में सबसे बड़ा अंतर यही है कि विधेयक सदन में जनप्रतिनिधियों के बहुमत समर्थन से बनता है और स्थायी तौर पर कानून की शक्ल ले लेता है लेकिन अध्यादेश सदन में पेश हुए बगैर केंद्र सरकार द्वारा राष्ट्रपति के पास भेजा जाता है और मंजूर कराया जाता है.

सवाल – क्या हाल के बरसों में अध्यादेश लाने की रफ्तार केंद्र सरकारों द्वारा बढ़ी है?
– आंकड़े कहते हैं कि संसदीय लोकतंत्र के पहले 30 सालों में हर 10 बिल के अनुपात में 02 अध्यादेश आए. 16वीं लोकसभा में यानि 2014 से 19 के बीच ये अनुपात हर 10 बिल पर 3.5 अध्यादेश का हो गया. मौजूदा लोकसभा में अनुपात यही है.

Tags: Bills passed without discussion, Centre Government, Kejriwal Government, Modi government, Ordinance

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