व्रत कथा के बिना अधूरी है भगवान शिव माता पार्वती की पूजा

माता पार्वती ने भाद्रपद की शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को कठोर तपस्या कर भगवान शिव को पति के रूप में प्राप्त किया था. इस दौरान उन्होंने ना तो कुछ खाया और ना ही पीया. इसलिए इस दिन निर्जला व्रत रखने की परंपरा है. इस व्रत कथा के बिना अधूरी है भगवान शिव माता पार्वती की पूजाहरतालिका तीज आज देशभर में हरतालिका तीज मनाई जा रही है. इस पर्व का हिंदू धर्म में विशेष महत्व है. मान्यता है कि जो भी सुहागिन इस दिन निर्जल व्रत कर भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करती है, भगवान उसकी हर मनोकामना पूर्ण करते हैं और उनका वैवाहिक जीवन भी खुशियों से भर जाता है. साल में रखी जाने वाली तीनों तीजों में से हरतालिका तीज का व्रत सबसे खास और कठिन होता है. इस दिन महिलाएं 24 घंटे निर्जल व्रत रखती हैं और अगले दिन भगवान शिव, माता पार्वती और भगवान गणेश की प्रतिमाओं का विर्सजन करने के बाद ही व्रत खोलती हैं. इससे पहले पूरी रात जागरण किया जाता है.हरतालिका तीज के दिन महिलाएं सोलह श्रृंगार करती हैं और माता पार्वती को भी श्रृंगार का सामान अर्पित करती हैं. इसके बाद विधि विधान से पूजा करने बाद व्रत कथा का पाठ करती हैं. मान्यता है कि हरतालिका तीज का व्रत कथा सुने या पढ़े बिना अधूरा माना जाता है. ऐसे में पूजा के बाद व्रत कथा का पाठ अति आवश्यक है.

सबसे पहले माता पार्वती ने किया था व्रत
हरतालिका तीज का व्रत हर साल भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को रखा जाता है. धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक हरतालिका तीज का व्रत सबसे पहले माता पार्वती ने भगवान शिव को पति के रूप में प्राप्त करने के लिए किया था. इसकी कथा खुद भगवान शिव ने माता पार्वती को उनका पूर्व जन्म याद दिलाने के लिए सुनाई थी. आइए जानते हैं क्या है हरतालिका तीज की व्रत कथा-

ये है व्रत कथा
भगवान शिव ने माता पार्वती को बताया कि उन्होंने काफी छोटी उम्र से ही भगवान शिव को पति के रूप में प्राप्त करने के लिए कठोर तपस्या शुरू कर दी थी. इस कठोर तपस्या के दौरान देवी पार्वती ने केवल हवा और सूखे पत्तों का सेवन किया. माघ की कड़कड़ाती सर्दी में उन्होंने लगाताकर जल में तप किया, तपती गर्मी में पंचाग्नि में शरीर को तपाया और श्रावण की भीषण बारिश में खुले आसमान के नीचे कठिन तपस्या की. इस दौरान उन्होंने अन्न जल का एक दाना तक ग्रहण नहीं किया. माता पार्वती के पिता उनके इस कष्ठ को देख दुखी हो उठे, लेकिन चाहकर भी कुछ कर नहीं पा रहे थे. ऐसे में एक दिन उनका दुख देखकर नारदजी माता पार्वती के घर आए और उनके पिता से कहा कि भगवान विष्णु माता पार्वती की कठिन तपस्या से बेहद प्रसन्न हैं और वो उनसे विवाह करना चाहते हैं. नारदजी के मुख से ये बात सुनकर पार्वती जी के पिता की खुशी का ठिकाना नहीं रहा. वह तुरंत इस प्रस्ताव के लिए तैयार हो गए. उन्होंने कहा, एक पिता के लिए इससे ज्यादा खुशी की बात और क्या होगी कि उसकी पुत्री सुख सम्पदा से युक्त पति के घर की लक्ष्मी बने. माता पार्वती के पिता की स्वीकृति पाकर नारदजी वापस लौट गए. जब माता पार्वती को इस बारे में पता चला तो वह दुखी हो गईं क्योंकि वह भगवान शिव को मन ही मन पति मान चुकी थी फिर भगवान विष्णु से विवाह कैसे कर सकती थीं. उनकी एक सखी ने उनकी मानसिक दशा तो समझते हुए उनके दुख का कारण पूछा तो माता पार्वती ने पूरी बात बताई. इस पर उनकी सखी ने कहा, इसमें विचलित होने की कोई बात नहीं. उन्होंने माता पार्वती को इस स्थिति से निकलने का एक उपाय सुझाया. उन्होंने कहा कि वह माता पार्वती को एक घने जंगल में ले जाएंगी जो साधना स्थल भी हैं. वहां वह अपनी तपस्या भी कर सकेंगी और उनके पिता को पता भी नहीं चलेगा. माता पार्वती ने ऐसा ही किया और जंगल में बनी एक गुफा में भगवान शिव की साधना में लीन हो गईं. भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को उन्होंने रेत से एक शिवलिंग का निर्माण किया और व्रत किया. इस दौरान वह पूरी रात भगवान शिव की स्तूती के गीत गाती रहीं. माता पार्वती की कठिन तपस्या से भगवान शिव की समाधि टूट गई. वह तुरंत माता पार्वती के पास पहुंच गए और उनसे वर मांगने को कहा. इस पर माता पार्वती ने उनसे खुद को पत्नी के रूप में स्वीकार करने का अनुरोध किया. इस पर भगवान शिव तथास्तु कहकर कैलाश पर्वत लौट गए. इसके बाद अगले दिन प्रात: माता पार्वती ने समस्त सामग्री को जल में प्रवाहित कर व्रत का पारण किया|

Edited by : Switi Titirmare

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