जनेऊ को पहनते और बदलते समय कौन सा बोला जाता है मंत्र

हिंदू धर्म में यज्ञोपवीत का बहुत ज्यादा महत्व माना गया है. यज्ञोपवीत या फिर कहें जनेऊ के तीन धागों की पवित्रता को ऐसे भी जाना जा सकता है कि इसे देवताओं में ब्रह्मा, विष्णु और महेश और ऋण में देवऋण, पितृऋण और ऋषिऋण का प्रतीक माना गया है. यह हिंदू धर्म के प्रमुख 16 संस्कारों में से एक है, जिसे कोई भी सनातनी हिंदू धारण कर सकता है, जो इसके नियमों का पूरी तरह से पालन कर सकता हो. हिंदू मान्यता के अनुसार इसी यज्ञोपवीत संस्कार को कब धारण करना चाहिए और कब बदलना चाहिए, आइए इसे जुड़े सभी जरूरी नियम के बारे में विस्तार से जानते हैं|

क्या होता है यज्ञोपवीत संस्कार
हिंदू धर्म में यज्ञोपवीत संस्कार अमूमन किसी भी बालक की 10 साल की उम्र में किया जाता है. चूंकि यह हिंदू संस्कारों का एक महत्वपूर्ण संस्कार है, इसलिए इसे लोग बड़े नियम के साथ करते हैं. इस सस्कार के पूरे होने के बाद बच्चे को भी यज्ञोपवीत या फिर कहें जनेऊ की पवित्रता को कायम रखने के लिए कुछ नियमों का पूरा पालन करना पड़ता है|

जनेऊ पहनने का नियम एवं लाभ
जनेऊ को हमेशा बाएं कंधे से दायीं कमर की तरफ ‘ॐ यज्ञोपवीतं परमं पवित्रं, प्रजापतेयर्त्सहजं पुरस्तात्. आयुष्यमग्र्यं प्रतिमुञ्च शुभ्रं, यज्ञोपवीतं बलमस्तु तेजः’ मंत्र को बोलते हुए पहना जाता है. 96 अंगुल लंबे जनेऊ में 64 कलाओं और 32 विद्याओं को सीखने का सार छिपा होता है. इसमें लगी पांच गांठें पांच ज्ञानेंद्रिय और पंचकर्म की प्रतीक होती हैं. जनेऊ को अक्सर मल-मूत्र विसर्जन के समय कान पर कस कर दो बार लपेटना होता है. इसके पीछे सबसे पहला कारण यह है कि ऐसा करने पर इसके अपवित्र होने की आशंका नहीं रहती है दूसरा ऐसा करने पर व्यक्ति के कान के पीछे की दो नसें, जिनका संबंध पेट की आंतों से होता है, उस पर दबाव पड़ने से न सिर्फ मल-मूत्र का विसर्जन आसानी से होता है, बल्कि व्यक्ति को अन्य प्रकार के स्वास्थ्य लाभ की प्राप्ति होती है|

कब-कब बदलना चाहिए जनेऊ
हिंदू मान्यता के अनुसार जब कभी आपके घर में किसी की मृत्यु हो जाए तो शूतक खत्म होने के बाद आपको अपना जनेऊ बदलना चाहिए। इसी प्रकार यदि आपका जनेऊ आपके कंधे से सरककर बायें हाथ के नीचे आ जाय, या फिर किसी कारणवश टूट जाए, या फिर शौच के समय आपके द्वारा कान पर न रखने के कारण अपवित्र हो जाए तो जनेऊ तुरंत बदल देना चाहिए। इसी प्रकार श्राद्ध कर्म करने के बाद, चंद्रग्रहण और सूर्यग्रहण के बाद भी जनेऊ विधि-विधान से बदल देना चाहिए।

कैसे बदलें जनेऊ
जनेऊ अपवित्र हो जाने पर व्यक्ति को उसे ‘एतावद्दिन पर्यन्तं ब्रह्म त्वं धारितं मया. जीर्णत्वात्वत्परित्यागो गच्छ सूत्र यथा सुखम्’ मंत्र को बोलते हुए तुरंत उतारना चाहिए फिर इसके बाद विधि-विधान से दूसरा जनेऊ धारण करना चाहिए। इसके अलावा साल भर में एक बार इसी यज्ञोपवीत से जुड़ा श्रावण पर्व श्रावण मास की पूर्णिमा में आता है. इस पर्व पर किसी गुरु के निर्देशन में किसी नदी या सरोवर में खड़े होकर पूजा एवं कर्मकांड करने के बाद विधि-विधान से जनेऊ बदला जाता है. हिंदू मान्यता के अनुसार जब कभी भी कोई व्यक्ति जब संन्यास परंपरा में प्रवेश करता है तो वह अपने जनेऊ या फिर कहें यज्ञोपवीत उतार देता है|

Edited by : Switi Titirmare 

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