केंद्र के फैसलों को सड़क-संसद से लेकर अदालत में घेर रही कांग्रेस, क्या ये भाजपा के लिए है नई मुसीबत

लोकसभा चुनाव 2024 से पहले कांग्रेस पार्टी, मोदी सरकार को घेरने का कोई मौका नहीं छोड़ रही है। कांग्रेस पार्टी, मोदी सरकार के फैसलों को ‘सड़क और संसद’ से लेकर सर्वोच्च अदालत में घेर रही है। पार्टी की रणनीति है कि 2024 से पहले, इस तरह की घेराबंदी से भाजपा के लिए राजनीतिक मुसीबत खड़ी की जाए। राहुल गांधी ने ओबीसी जनगणना का मुद्दा पकड़ लिया है, तो दूसरी तरफ पार्टी नेता जयराम रमेश, सर्वोच्च अदालत के समक्ष कुछ ऐसे मामले ले गए हैं, जो राजनीतिक नफा नुकसान तय करने में अहम भूमिका निभा सकते हैं। बतौर जयराम रमेश, सुप्रीम कोर्ट ने मेरी याचिकाओं को सुनने के लिए सात न्यायाधीशों की एक पीठ का गठन किया है। इस पीठ की अध्यक्षता स्वयं भारत के मुख्य न्यायाधीश ‘सीजेआई’ कर रहे हैं। यह पीठ मोदी सरकार द्वारा असंवैधानिक तरीकों से प्रमुख विधेयकों को धन विधेयक घोषित कर उन्हें पारित कराने के मामलों में मेरी याचिकाओं पर सुनवाई करेगी।

इन मामलों की सुनवाई होनी है
जयराम रमेश के मुताबिक, आखिरकार सुप्रीम कोर्ट ने मेरी याचिकाओं को सुनने के लिए सात न्यायाधीशों की एक पीठ का गठन किया है। खास बात है कि इस पीठ की अध्यक्षता स्वयं सीजेआई कर रहे हैं। मोदी सरकार ने प्रमुख विधेयकों को धन विधेयक घोषित कर पारित कराया है। सरकार का यह तरीका असंवैधानिक है। मैंने इस मुद्दे को संसद में और उसके बाहर भी उठाया है। सुप्रीम कोर्ट में तीन याचिकाओं के माध्यम से इस मामले को उठाया गया है। पहली याचिका 6 अप्रैल, 2016 को दायर की गई थी। इसमें राज्यसभा को प्रमुख कानूनों में संशोधनों पर चर्चा करने या उन्हें पारित करने के अवसर से वंचित करने की बात कही गई है। अन्य याचिकाओं में आधार विधेयक, राष्ट्रीय हरित न्यायाधिकरण सहित दूसरे न्यायाधिकरणों की शक्तियों को कमजोर करने वाला विधेयक और धन शोधन निवारण अधिनियम को अधिक कठोर बनाने वाला विधेयक शामिल हैं। उम्मीद है कि सर्वोच्च अदालत का अंतिम फैसला जल्द ही आएगा। इन फैसलों का संसद के कामकाज पर दूरगामी प्रभाव पड़ेगा।

पकौड़ा तलने वालों की कमाई भी हुई कम
बतौर जयराम रमेश, 2018 में जब प्रधानमंत्री मोदी से भारत में बढ़ती बेरोजगारी को लेकर सवाल पूछा गया, तब उन्होंने बेहद संवेदनहीनता के साथ कहा था, पकौड़े का ठेला लगाना भी विशेष तरह का रोजगार है। अब जो आंकड़े सामने आ रहे हैं, उनके मुताबिक वास्तव में उन्होंने बड़ी संख्या में लोगों को पकौड़ा तलने और दूसरे तरह के स्व-रोजगार के लिए मजबूर कर दिया है। अब पकौड़ा तलने वालों की कमाई भी पहले की तुलना में कम हो गई है। जब प्रधानमंत्री मोदी से भारत में बढ़ती बेरोजगारी के बारे में पूछा गया, तो हमेशा की तरह उन्होंने किसी भी समस्या से इनकार किया। उन्होंने कठोरता के साथ कहा, पकौड़े की दुकान खोलना भी गुणवत्तापूर्ण रोजगार के रूप में गिना जाता है। जयराम रमेश ने अपने बयान में कहा, देश के लिए दुख की बात है कि यह एक ऐसा वादा है जिसे पीएम मोदी ने पूरा किया है। 2022-23 के आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण में शामिल हाल ही में जारी सरकारी आंकड़ों के अनुसार, स्व-रोजगार अपनाने के लिए मजबूर लोगों का अनुपात आज 57 फीसदी के रिकॉर्ड उच्च स्तर पर है। पांच साल पहले यही प्रतिशत 52 था।

ग्रामीण इलाकों में दिहाड़ी मजदूरों की दैनिक आय कम
देश में नियमित वेतनभोगी श्रमिकों का अनुपात 24 फीसदी से गिरकर 21 फीसदी हो गया है। ये व्यापक स्तर पर मध्यम और निम्न मध्यम वर्ग के संकट का संकेत है। यह यूपीए के तहत वेतनभोगी श्रमिकों की हिस्सेदारी 14 फीसदी (2004-05) से लगभग दोगुनी होकर 23 प्रतिशत (2017-18) होने का उलट है। मोदी सरकार के तहत पकौड़े बनाने के लिए मजबूर स्व-रोजगार श्रमिकों की हिस्सेदारी आज 2004-05 की तुलना में अधिक है। पिछली चार तिमाहियों में मासिक आय 9.2 फीसदी से गिरकर रुपये 12,700 से 11,600 रुपये हो गई है। ग्रामीण इलाकों में दिहाड़ी मजदूरों की दैनिक आय भी लगभग 409 रुपये से गिर कर 388 रुपये पर पहुंच गई है। इसी समय, लग्जरी वस्तुओं और कारों की बिक्री बढ़ रही है, जो बढ़ती असमानता को प्रदर्शित करती है। भारत जोड़ो यात्रा के दौरान राहुल गांधी ने श्रमिकों के लिए संदेश दिया था कि आप अपने दम पर हैं। मोदी सरकार की नोटबंदी और जटिल जीएसटी जैसी दोषपूर्ण नीतियों ने श्रमिकों की दयनीय स्थिति में योगदान दिया है। 1991 में अर्थव्यवस्था के उदारीकरण के साथ अच्छी तनख्वाह वाली नौकरियों का भारतीयों का सपना 2014 में यूपीए के साथ समाप्त हो गया। केवल भावी भारत सरकार ही इस विनाशकारी पाठ्यक्रम को उलट सकती है।

Edited by: Switi Titirmare

 

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