यवतमाल: अमरावती की क्षेत्रीय सोयाबीन अनुसंधान केंद्र और कृषि विभाग की एक टीम ने सोमवार को सोयाबीन की फसल पर कीट और बीमारियों की समस्या का संयुक्त निरीक्षण किया। इस अवसर पर उन्होंने सोयाबीन उत्पादक किसानों के खेतों में जाकर अवलोकन किया और उनका मार्गदर्शन किया। इस टीम में डाॅ. पंजाबराव देशमुख कृषि विश्वविद्यालय के अंतर्गत क्षेत्रीय सोयाबीन अनुसंधान केंद्र, अमरावती के डॉ. वर्षा टापरे, डॉ. निचल, डॉ. मुंजे, डॉ. घावड़े, डॉ. डांडगे और एसोसिएट रिसर्च डायरेक्टर डॉ. प्रमोद यादगिरवार, डॉ. विपुल वाघ, डॉ. वासुले जिला अधीक्षक कृषि अधिकारी प्रमोद लाहाले देशमुख कृषि विश्वविद्यालय, अमरावती शामिल थे।
यवतमाल तहसील में हिवरी और खरोला, आर्णी तहसील में जवला, महगाव में दहिसावली और अंबोदा और उमरखेड में नागेशवाड़ी और सुकली का दौरा और अवलोकन किया गया। विभिन्न कारकों के कारण जैसे अगस्त माह में वर्षा की मात्रा, तापमान में वृद्धि, पोषक तत्वों की कमी, उसके बाद लगातार वर्षा, सोयाबीन की फसल पर छेदक, घुन तथा सफेद मक्खी का प्रकोप। जिस क्षेत्र में फलियां भरने की अवस्था में हैं, वहां चारकोल सड़न और जड़ सड़न के साथ-साथ पीला मोज़ेक के प्रकोप और वर्तमान परिस्थितियों के संबंध में गहन तकनीकी अवलोकन किया गया।
ऐसे स्थानों पर सोयाबीन में टेबुकोनाजोल 10 प्रतिशत प्लस सल्फर 63 प्रतिशत 3 ग्राम प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करना चाहिए। साथ ही जो किसान सोयाबीन की फसल की कटाई के बाद रबी सीजन में चने की फसल लेना चाहते हैं, उन्हें ट्राइकोडर्मा पाउडर 2 किलोग्राम प्रति एकड़ की दर से जैविक खाद के साथ मिलाकर फैलाना चाहिए।
Edited By: Switi Titirmare