‘महिलाओं द्वारा पॉक्सो और एससी/एसटी एक्ट का बेजा इस्तेमाल चिंताजनक है’

प्रयागराज :  इलाहाबाद हाईकोर्ट ने समाज में यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण अधिनियम और एससी/एसटी एक्ट के बढ़ते दुरुपयोग पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि इस दिशा में बेहद गंभीरता से साथ विचार करने की आवश्यकता है कि अपराध की जद में निर्दोष को फंसाने के लिए इनका प्रयोग बढ़ता जा रहा है। समाचार वेबसाइट न्यू इंडियन एक्सप्रेस के अनुसार हाईकोर्ट ने एक केस की सुनवाई करते हुए कहा कि पॉक्सो के साथ-साथ अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के तहत फर्जी शिकायतों और ऐसे कानूनी प्रावधानों का बढ़ता दुरुपयोग बेहद चिंताजनक है। हाईकोर्ट में यौन अपराध के केस आरोपी को जमानत देते हुए जस्टिस शेखर कुमार यादव ने कहा, “पॉक्सो और एससी/एसटी एक्ट के तहत निर्दोष व्यक्तियों के खिलाफ झूठी एफआईआर दर्ज करने के प्रकरण बढ़ते जा रहे हैं। लेकिन इसमें सबसे दुर्भाग्यपूर्ण भाग्य यह है कि आजकल ज्यादातर मामलों में महिलाएं पैसे हड़पने के लिए इसे बतौर हथियार इस्तेमाल कर रही हैं, जिसे रोका जाना चाहिए।” कोर्ट ने यह टिप्पणी आरोपी अजय यादव द्वारा अग्रिम जमानत मांगे जाने के केस में की थी। आरोपी अजय यादव पर भारतीय दंड संहिता की धारा 376 313, 504, 506 और पॉक्सो एक्ट की धारा 3/4 के तहत 2011 में उत्तर प्रदेश के आज़मगढ़ जिले में एफआईआर दर्ज हुई थी। जस्टिस शेखर कुमार यादव ने 10 अगस्त के आरोपी अजय यादव को जमानत देते हुए अपने आदेश में कहा, “मुझे लगता है कि अब समय आ गया है कि राज्य और यहां तक ​​कि भारत सरकार को भी इस गंभीर मुद्दे के प्रति संवेदनशील होना चाहिए।

” इसके साथ जस्टिस यादव ने अपने आदेश में कहा कि यदि जांच में यह पाया जाता है कि पीड़िता द्वारा आरोपी अजय यादव के खिलाफ दर्ज कराई गई शिकायत झूठी है तो आपराधिक प्रक्रिया संहिता में दिये प्रावधानों के तहत पीड़िता के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही शुरू की जाए। जस्टिस शेखर यादव ने अपने आदेश में यह भी कहा कि शिकायत निराधार पाए जाने की सूरत में राज्य द्वारा शिकायतकर्ता को दिया गया कोई भी वित्तीय मुआवजा वसूला जाए। कोर्ट ने जांच अधिकारियों से यह सुनिश्चित करने का आग्रह किया कि यौन अपराधों के वास्तविक पीड़ितों को जरूर न्याय मिले। कोर्ट में आरोपी अजय यादव की ओर से पेश हुए वकील ने तर्क दिया कि उन्हें झूठे केस में फंसाया गया है और जैसा कि एफआईआर में घटना के बारे में उल्लेख किया गया है, वैसी कोई घटना कभी नहीं हुई । इसके साथ ही आरोपी के वकील ने पीड़िता के बयानों में विरोधाभासी बातों पर प्रकाश डाला और बताया कि सीआरपीसी की धारा 164 के तहत पीड़िता का बयान “सहमति” के साथ शारीरिक संबंध बनाने की ओर इशारा कर रहे हैं।

Edited by : Switi Titirmare

 

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