मायावती पड़ीं कमजोर तो यूपी से बिहार तक दलित सियासत पकड़ने लगी जोर, किसकी नैया लगेगी छोर?

मायावती पड़ीं कमजोर तो यूपी से बिहार तक दलित सियासत पकड़ने लगी जोर, किसकी नैया लगेगी छोर?

उत्तर प्रदेश: बीजेपी का दलित सम्मेलन शुरू हो गया है. समाजवादी पार्टी के नेता और कार्यकर्ता अभी से वाल्मीकि जयंती की तैयारी में जुट गए हैं तो बिहार की सड़कों पर नीतीश कुमार की पार्टी जेडीयू का भीम रथ दौड़ रहा है. अगले महीने जेडीयू ने पटना में भीम संसद करने की घोषणा की है. दलित समुदाय पर बसपा प्रमुख मायावती की पकड़ कमजोर होती जा रही है, जिसके चलते ही बिहार से लेकर यूपी तक दलित सियासत जोर पकड़ने लगी है. मिशन-2024 को लेकर दलित समुदाय वोटों के लिए जबरदस्त मारामारी मची है. बिहार में 17 फीसदी दलित मतदाता हैं तो यूपी में 22 फीसदी से ज्यादा दलित समुदाय के लोगों की आबादी है. इस तरह दोनों ही राज्यों में दलित समुदाय का वोट किसी की तकदीर बना सकता है तो किसी की बिगाड़ भी सकता है. दलित समाज का सच्चा साथी कौन, इसी लेकर असल लड़ाई है. देखना है कि दलित मतदाता 2024 में किसकी नैया पार लगाते हैं?

बीजेपी का दलित सम्मेलन
यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने हापुड़ से मंगलवार को दलित सम्मेलन की शुरुआत की. सालों तक इस वोट बैंक पर बीएसपी का एकाधिकार रहा. लेकिन बीजेपी ने अब इसमें बहुत हद तक सेंधमारी कर ली है. यूपी में बीजेपी ने 75 सीटें जीतने का लक्ष्य रखा है, जो दलित बिरादरी के समर्थन के बिना असंभव है. दलित समाज में मायावती का समर्थन धीरे-धीरे कम होने लगा है. पिछले विधानसभा चुनाव में तो बसपा का वोट शेयर घट कर 13 फीसदी रह गया था और महज एक सीट ही जीत सकी है. बसपा के गठन के बाद से अब तक का सबसे खराब प्रदर्शन है. बस यहीं से बीजेपी की उम्मीदों को पंख लग गए हैं.

यूपी में दलित समुदाय दो हिस्सों में बंटे
उत्तर प्रदेश में दलित समुदाय दो हिस्सों में बंटा है, जो जाटव और गैर-जाटव दलित में बंटा हुआ है. गैर-जाटव वोटर 2014 में ही बसपा का साथ छोड़ चुका है और अब जाटव वोट खिसकता हुआ नजर आ रहा है. अब यूपी 2022 के विधानसभा चुनाव के नतीजों से दलित समाज के बदलते मूड को समझते हैं. मतदान बाद ने एक सर्वे कराया. इसके नतीजे बड़े चौंकाने वाले रहे. जाटव बिरादरी के 21 फीसदी वोटरों ने बीजेपी को और 65 फीसदी लोगों ने बसपा को वोट किया. बीएसपी अध्यक्ष मायावती खुद भी इसी जाटव बिरादरी की हैं. समाजवादी पार्टी को बस 9 प्रतिशत जाटव वोट मिले. यूपी में 12 प्रतिशत जाटव वोटर हैं, मतलब दलितों में आधी से भी अधिक आबादी इनकी है|

गैर-जाटव दलित वोट भी बंटे
जाटव वोटों की ताकत पर ही मायावती चार बार यूपी की मुख्यमंत्री बनी. राज्य में करीब 8 फीसदी गैर जाटव दलित वोटर हैं. CSDS के सर्वे के मुताबिक इनमें से 41 प्रतिशत ने बीजेपी को, करीब 27 फीसदी ने बसपा के और 23 प्रतिशत लोगों ने समाजवादी पार्टी को वोट किया. आंकड़े बताते हैं कि गैर-जाटव दलित वोटों का बंटवारा हो गया है और अब इनकी पहली पसंद बीजेपी बन गई है. बीजेपी अब इन्हें पूरी तरह अपना बनाने के मिशन में जुटी है. मायावती की सियासी कमजोरी के चलते पार्टी की नजर जाटव वोट बैंक पर भी है|

Edited by: Switi Titirmare 

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